कबिता="निर्झर" सिद्धीचरण श्रेष्ठ Get link Facebook Twitter Pinterest Email Other Apps By साहित्य झुपडी - August 01, 2017 "निर्झर " द्रुत निर्झर ! झर झर्झर, वन,पर्वत स्वरले भर! गिरिउपर, तरुको तल म बसीकन स्वर सुन्दछु! स्वरमा सुख, स्वर जिवन, गर कल्कल स्वर सुन्दर! म छु बिह्लल, सुख दुर छ, बह झर्झर, प्रिय निर्झर! "१९८८ " Read more